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ईश्वर की सेवा करो तो मन से नही तो मत करो




ऊपर से हम कहते हैं सब ईश्वर का है वो ही सब चलता हैं,, हमारा क्या हैं,, सब ठाकुर जी का हैं,, तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा बातें इतनी बड़ी बड़ी हैं परंतु ये सब आत्मा से नही बोल रहे हैं हम यह दुनिया को बेफकूफ बनाने के लिए बोल रहे हैं। पर हमें यह पता है लाख आंख से देखना वाला तुम्हे भी देखा रहा हैं,, तुम्हारी बातें सुन रहा हैं। जब तक आत्मा से नही जोड़ोगे भगवान से प्रीति सरल नहीं हैं। सिर्फ़ एक ही बात मन में रहेगी की हम ईश्वर के हैं और ईश्वर हमारे फिर प्रतिदिन हरिनाम संकीर्तन सेवा के लिए बोलना नही पड़ेगा, प्रतिदिन प्रभात फेरी के लिए फोर्स नही करना पड़ेगा। फिर ठाकुर जी चरणों में रख लेंगे। सच्ची माना इस बात को राधा रानी बहुत कृपामय हैं। वो तुरंत आपको स्वीकार करती हैं।
परम पूज्य गुरुदेव गोवत्स
श्री राधाकृष्ण जी महाराज
के शिष्य गोवत्स पंडित
मोहित मुद्गल जी महाराज
सदगुरू देव भगवान की जय
पंडित गोविंद दास @mohitmudgal1998
साल का अंतिम चंद्र ग्रहण 08/11/2022 को लगने जा रहा हैं….

2022 का आखिरी चंद्र ग्रहण 8 नवंबर 2022 को लगने जा रहा है. यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। भारत में दिखने के कारण का सूतक काल भी मान्य होगा. चंद्र ग्रहण का सूतक काल ग्रहण लगन से 9 घंटे पहले लग जाता हैं, और ग्रहण खत्म होने के साथ ही समाप्त हो जाता है.
जानें भारत में कब दिखेगा चंद्रग्रहण?
साल 2022 का आखिरी चंद्र ग्रहण 8 नवंबर 2022 को लगने जा रहा है। 8 नवंबर 2022 को साल का ये आखिरी चंद्र ग्रहण लगेगा। 8 नवंबर को लगने वाला चंद्र ग्रहण कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन लग रहा है। साल का ये अंतिम चंद्र ग्रहण पूर्ण चंद्रग्रहण होगा।
क्या होता है पूर्ण चंद्र ग्रहण (What is Chandra Grahan?)
चंद्र ग्रहण के दौरान सूर्य की परिक्रमा के दौरान पृथ्वी, चांद और सूर्य के बीच आ जाती है. इस दौरान चांद धरती की छाया से पूरी तरह से छुप जाता है. पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक दूसरे के बिल्कुल सीध में होते हैं. इस दौरान जब हम धरती से चांद देखते हैं तो वह हमें काला नजर आता है और इसे चंद्रग्रहण कहा जाता है.
साल का आखिरी चंद्र ग्रहण 8 नवंबर 2022 को भारत में 5 बजकर 32 मिनट से दिखाई देना शुरू होगा और शाम 6 बजकर 18 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। ऐसे में चंद्र ग्रहण का सूतक काल सुबह 9 बजकर 21 मिनट से शुरू होगा और 6 बजकर 18 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। साल का ये आखिरी चंद्र ग्रहण मेष राशि में लगेगा।
कहां-कहां दिखाई देगा ये चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2022 Visibility)
यह चंद्र ग्रहण मुख्य रूप से उत्तरी-पूर्वी यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, प्रशान्त महासागर, हिन्द महासागर, उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के अधिकांश हिस्सों से दर्शनीय होगा. दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप और अफ्रीका महाद्वीप से कोई ग्रहण दिखाई नहीं देगा.
भारत में कहां दिखाई देगा चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2022 Visibility In India)
भारत में, पूर्ण ग्रहण संपूर्ण भारत में दिखाई देगा।
चंद्र ग्रहण का सूतक काल …..
ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक, चंद्र ग्रहण का सूतक काल ग्रहण से 9 घंटे पहले शुरू हो जाता है। ये चंद्र ग्रहण भारत में भी नजर आएगा इसलिए ग्रहण के दौरान इसका सूतक काल भारत में भी मान्य होगा।

चंद्र ग्रहण के दौरान इन बातों का रखें खास ख्याल
ग्रहण के दौरान किसी भी तरह की यात्रा करने से बचें …..
सूतक काल के दौरान घर पर ही रहें. कोशिश करें कि ग्रहण की रोशनी आपने घर के अंदर प्रवेश ना करें.
सूर्य ग्रहण की तरह की चंद्र ग्रहण को भी नग्न आंखों से नहीं देखना चाहिए।
ग्रहण से पहले और ग्रहण के बाद स्नान अवश्य करना चाहिए। कहा जाता है ऐसा करने से ग्रहण का कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं रहता।
सूतक काल के दौरान कुछ भी खाने पीने बचें…….
अगर ग्रहण से पहले कुछ भोजन बच गया है, तो ग्रहण खत्म होने के बाद इसका सेवन ना करें और नया भोजन बनाकर ही उसका सेवन करें।

चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएं रखें इन बातों का ख्याल (Chandra Grahan Precaution For Pregnant Ladies)
ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएं घर से बाहर निकलने से बचें….
किसी भी परिस्थिति में ग्रहण को ना देखें।
ग्रहण के दौरान अपने पास दूर्वा घास रखें।
इस दौरान सिलाई, कढ़ाई, बुनाई जैसा कोई भी काम ना करें।
शांति से काम लें और किसी भी प्रकार का मानसिक या फिर शारीरिक तनाव न लें।
चंद्र ग्रहण के उपाय (Chandra Grahan Upay)
चंद्र ग्रहण के दौरान पूजा और भगवान का ध्यान करें. इस तरह देवताओं की पूजा करना शुभ माना जाता है।
चंद्र ग्रहण के दौरान कुछ भी खाने पीने से बचना चाहिए, कहा जाता है कि ग्रहण के समय हमारे आसपास कई तरह के बैक्टीरिया पैदा होते हैं जो खाने के अंदर शामिल होकर आपके शरीर में जा सकते हैं।
चंद्र ग्रहण के बाद स्नान और दान का काफी खास महत्व है, मान्यता के अनुसार, चंद्र ग्रहण के दिन गंगा नदी में स्नान करने के बाद अगर दान करते हैं तो काफी ज्यादा शुभ माना जाता है।
गोवत्स पंडित मोहित
मुदगल जी महाराज
वक्ता नानी बाई रो मायरो
प्रतिदिन हरिनाम संकीर्तन सेवा
विश्व गौ सेवा जागृति मिशन
श्री सदगुरुदेव भगवान की जय
गोविंद दास @mohitmudgal1998 http://साल का अंतिम चंद्र ग्रहण 08/11/2022 को लगने जा रहा हैं
धनतेरस खरीदारी एवं पूजा मुहूर्त

धनतेरस खरीदारी एवं पूजा मुहूर्त
दिनांक 23/10/2022
१) लाभ :
09:15:56 से 10:40:38
२) अमृत :
10:40:38 से 12:05:20
३) शुभ :
13:30:01 से
14:54:43
४) शुभ :
17:44:07 से 19:19:30
५) अमृत :
19:19:30 से 20:54:53
६) लाभ
25:41:03 से
27:16:26
७) शुभ :
28:51:49 से 30:27:13
यह सभी मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ हैं आप अपने सुविधाजनक पूजा कर सकते हैं ।
१) धनतेरस का
शास्त्रोक्त नियम :
धनतेरस कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष के उदयव्यापिनी तिथि को मनाई जाती हैं।
यहां उदयव्यापिनी तिथि से मतलब है कि , जो तिथि सूर्य उदय के सात उदित होती है, उस दिन धनतेरस मनाई जाती हैं।
धनतेरस के दिन धन्वंतरि भगवान की पूजा की जाती हैं,, और शास्त्रों में षोडशोपचार पूजा का विधान हैं। षोडशोपचार यानी विधिवत रूप से 16 क्रियाओं से पूजा संपन्न करना हैं।
२) धनतेरस पर क्या खरीदना चाहिए ?
धनतेरस के दिन नई चीज जैसे सोना, चांदी, पीतल, खरीदना शुभ माना गया हैं।
इसके अलावा इस दिन धनिया खरीदना एवं झाड़ू खरीदना भी बहुत शुभ माना गया है, झाड़ू 1,3,5 की संख्या में ही लेवे।
३) धनतेरस क्यों मनाया जाता हैं?
धनतेरस भगवान धनवंतरी के प्रकट होने के रूप में मनाया जाता हैं। शास्त्रों के अनुसार दीपावली से पूर्व धन्वंतरी भगवान समुद्र मंथन से अमृत का कलश लेकर उत्पन्न हुए थे ।
इसलिए धनतेरस को धन्वंतरी जयंती भी कहते हैं ।
गोवत्स पंडित मोहित मुदगल जी महाराज
वक्ता नानी बाई रो मायरो
प्रतिदिन हरि नाम संकीर्तन सेवा
विश्व गौ सेवा
जागृति मिशन@mohitmudgal1998
शारदीय नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त

दिनांक 26 /09/2022
घटस्थापना मुहूर्त
प्रातः
06:11 से
07:41 तक
09:11 से
10:42 तक
शारदीय नवरात्रि पूजा कार्यक्रम सूची
1) प्रातः 6:00 बजे से 8:00 बजे तक
कृषि मंत्री माननीय श्री लालचंद कटारिया जी के हाथों से नवरात्रि स्थापना ।
2) श्री पवन शर्मा जी ,, श्री राम प्रसाद गुप्ता जी,, चोमू उप सरपंच श्रीमान शीशराम जी ,,
3)बिसलेरी वोटर थोक विक्रेता श्रीमान आकाश जी
4) कोलकाता से मेरे प्रिय यजमान निताई गोपाल जी
5) ऑस्ट्रेलिया से मेरे प्रिय यजमान लक्ष्मी नारायण चक्रबोर्ती जी
सभी हरि वैष्णव जन को भगवती राजराजेश्वरी मां दुर्गा का आशीर्वाद सभी भक्तजनों को प्रदान करेंगे
सदगुरुदेव भगवान की जय
पंडित गोविंद दास @mohitmudgal1998 Contact ,,,,,, Official Facebook Page : Govats Pandit Mohit Mudgal ji Maharaj
सभी हरि वैष्णव जन से निवेदन है अपने स्तर पर जितना हो सकता हैं उतना प्रयास कीजिए गौमाता के लिए ( गौमाता को सेनिटाइज करवाया जा रहा हैं,, भोजन की व्यवस्था करी जा रही हैं । ( अंतिम संस्कार के लिए हमारे रघुपति दास प्रभु जी साथ दे रहे हैं। आप सभी से भी अनुरोध हैं जितनी हो सकती हैं उतनी गौसेवा करे। धन सबके पास हैं परंतु इसके लिए हमारे अंदर भाव होना चाहिए । सिर्फ़ अपने सुख के लिए धन को काम में लेना बिल्कुल सही नही हैं,, सभी के साथ मिलकर उसका प्रयोग करना चाहिए।
@mohitmudgal1998 विश्व गौसेवा जागृति मिशन
जन्माष्टमी महोत्सव 19/8/2022 को मनाया जाएगा , हर बार दो उत्सव मनाए जाते हैं जानिए इसका क्या कारण हैं?

पंचांग के अनुसार हर बार दो उत्सव मनाए जाते हैं। जानिए क्यों मनाए जाते हैं?
स्मार्त एवं वैष्णव में भेद
व्रत-उपवास आदि करने वालों को ‘वैष्णव’ व ‘स्मार्त’ में भेद का ज्ञान होना अतिआवश्यक है। हम यहां ‘वैष्णव’ व ‘स्मार्त’ का भेद स्पष्ट कर रहे हैं।
‘वैष्णव’- जिन लोगों ने किसी विशेष संप्रदाय के धर्माचार्य से दीक्षा लेकर कंठी-तुलसी माला, तिलक आदि धारण करते हुए तप्त मुद्रा से शंख-चक्र अंकित करवाए हों, वे सभी ‘वैष्णव’ के अंतर्गत आते हैं।
‘स्मार्त’- वे सभी जो वेद-पुराणों के पाठक, आस्तिक, पंच देवों (गणेश, विष्णु, शिव, सूर्य व दुर्गा) के उपासक व गृहस्थ हैं, ‘स्मार्त’ के अंतर्गत आते हैं।
कई पंडित यह बता देते हैं कि जो गृहस्थ जीवन बिताते हैं वे स्मार्त होते हैं और कंठी माला धारण करने वाले साधु-संत वैष्णव होते हैं जबकि ऐसा नहीं है जो व्यक्ति श्रुति स्मृति में विश्वास रखता है। पंचदेव अर्थात ब्रह्मा , विष्णु , महेश , गणेश , उमा को मानता है , वह स्मार्त हैं
प्राचीनकाल में अलग-अलग देवता को मानने वाले संप्रदाय अलग-अलग थे। श्री आदिशंकराचार्य द्वारा यह प्रतिपादित किया गया कि सभी देवता ब्रह्मस्वरूप हैं तथा जन साधारण ने उनके द्वारा बतलाए गए मार्ग को अंगीकार कर लिया तथा स्मार्त कहलाये।
जो किसी वैष्णव सम्प्रदाय के गुरु या धर्माचार्य से विधिवत दीक्षा लेता है तथा गुरु से कंठी या तुलसी माला गले में ग्रहण करता है या तप्त मुद्रा से शंख चक्र का निशान गुदवाता है । ऐसे व्यक्ति ही वैष्णव कहे जा सकते है अर्थात वैष्णव को सीधे शब्दों में कहें तो गृहस्थ से दूर रहने वाले लोग।
वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्हें छ: गुणों ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज से सम्पन्न होने के कारण भगवान या ‘भगवत’ कहा गया है और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं।
इस सम्प्रदाय की पांचरात्र संज्ञा के सम्बन्ध में अनेक मत व्यक्त किये गये हैं।
‘महाभारत’के अनुसार चार वेदों और सांख्ययोग के समावेश के कारण यह नारायणीय महापनिषद पांचरात्र कहलाता है।
नारद पांचरात्र के अनुसार इसमें ब्रह्म, मुक्ति, भोग, योग और संसार–पाँच विषयों का ‘रात्र’ अर्थात ज्ञान होने के कारण यह पांचरात्र है।
‘ईश्वरसंहिता’, ‘पाद्मतन्त’, ‘विष्णुसंहिता’ और ‘परमसंहिता’ ने भी इसकी भिन्न-भिन्न प्रकार से व्याख्या की है।
‘शतपथ ब्राह्मण’ के अनुसार सूत्र की पाँच रातों में इस धर्म की व्याख्या की गयी थी, इस कारण इसका नाम पांचरात्र पड़ा। इस धर्म के ‘नारायणीय’, ऐकान्तिक’ और ‘सात्वत’ नाम भी प्रचलित रहे हैं।
प्रायः पंचांगों में एकादशी व्रत , जन्माष्टमी व्रत स्मार्त जनों के लिए पहले दिन और वैष्णव लोगों के लिए दूसरे दिन बताया जाता है । इससे जनसाधारण भ्रम में पड जाते हैं। दशमी तिथि का मान 55 घटी से ज्यादा हो तो वैष्णव जन द्वादशी तिथि को व्रत रखते हैं अन्यथा एकादशी को ही रखते है। इसी तरह स्मार्त जन अर्ध्दरात्री को अष्टमी पड रही हो तो उसी दिन जन्माष्टमी मनाते हैं। जबकी वैष्णवजन उदया तिथी को जन्माष्टमी मनाते हैं एवं व्रत भी उसी दिन रखते हैं।
कामिका एकादशी

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का महत्व और कथा बताई थी।
उन्होंने कहा किसी गांव में एक ठाकुर और एक ब्राह्मण रहते थे। दोनों ही एक-दूसरे से बिल्कुल नहीं बनती थी। एक दिन ठाकुर और ब्राह्मण का झगड़ा हो गया और गुस्से में आकर ठाकुर ने ब्राह्मण की हत्या कर दी। ब्रह्म हत्या के पाप से दुखी होकर ठाकुर ने ब्राह्मण का अंतिम संस्कार करने की कोशिश की। लेकिन दूसरे ब्राह्मणों ने उसे ऐसा नहीं करने दिया। ब्रह्म हत्या का दोषी होने के कारण ब्राह्मणों ने उसके यहां भोजन करने से मना कर दिया। तब दुखी होकर ठाकुर पाप से मुक्त होने के लिए एक ऋषि के पास गया। उसने पूछा हे ऋषि मैंने एक ब्राह्मण की हत्या कर दी है। इस हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा।
तब ऋषि कहे, हे राजन तुम्हें एक ही व्रत इस पाप से मुक्त करा सकता है। वह कामिका एकादशी व्रत है। तब ऋषि की आज्ञा मानकर ठाकुर ने कामिका एकादशी व्रत करना शुरू कर दिया। ठाकुर के व्रत से प्रसन्न होकर भगवान उसे दर्शन दिए और कहा कि तुम्हारे पापों का प्रायश्चित हो गया है। अब तुम ब्राह्मण की हत्या से मुक्त हो चुके हो।
कामिका एकादशी का महत्व बताएं
कामिका एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस व्रत को करने से हर तरह के पाप से मुक्ति मिलती है। यह अश्वमेध यज्ञ समान फल प्राप्त कर आता है। माना जाता है कि कामिका व्रत की कथा से हजार गोदान के बराबर फल की प्राप्ति होती है।